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महामूर्ख की कहानी: खयाली पुलाव (Mahamurkh Story in Hindi)

क्या आपने कभी सोचा है कि बिना मेहनत किए सिर्फ सपने देखने का अंजाम क्या होता है? पढ़िए एक ऐसे 'महामूर्ख' की मजेदार कहानी जो आपको हंसाएगी भी और बड़ी सीख भी देगी।

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क्या आपने कभी सोचा है कि बिना मेहनत किए सिर्फ सपने देखने का अंजाम क्या होता है? पढ़िए एक ऐसे 'महामूर्ख' की मजेदार कहानी जो आपको हंसाएगी भी और बड़ी सीख भी देगी।

हम सभी जीवन में बड़े सपने देखते हैं, और देखना भी चाहिए। लेकिन, क्या सिर्फ सपने देखने से सफलता मिलती है? बिल्कुल नहीं। हमारे आसपास कई ऐसे लोग होते हैं जो मेहनत करने की बजाय हवा में महल बनाने में विश्वास रखते हैं। आज की कहानी एक ऐसे ही व्यक्ति 'धनीराम' की है, जिसे गाँव वाले उसकी अजीबोगरीब हरकतों की वजह से 'महामूर्ख' कहते थे। यह कहानी बच्चों को सिखाएगी कि योजना बनाना और उसे हकीकत में बदलने में क्या अंतर है।


महामूर्ख और दूध का घड़ा 

बहुत समय पहले की बात है, सुंदरपुर नाम के एक गाँव में धनीराम नाम का एक व्यक्ति रहता था। धनीराम स्वभाव से बुरा नहीं था, लेकिन उसे काम करने से ज्यादा "खयाली पुलाव" पकाने (Daydreaming) की आदत थी। वह हमेशा यही सोचता रहता कि बिना हाथ-पैर हिलाए वह अमीर कैसे बन जाए।

मेहनत की कमाई और बड़ा सपना

एक दिन, धनीराम ने किसी जमींदार के यहाँ छोटी-मोटी मजदूरी की। जमींदार ने खुश होकर उसे पैसे देने के बजाय एक बड़ा घड़ा भरकर ताज़ा दूध दे दिया। धनीराम की खुशी का ठिकाना न रहा। वह दूध का घड़ा सिर पर रखकर अपने घर की ओर चल पड़ा।

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रास्ते में चलते-चलते उसके दिमाग में अमीर बनने की योजनाएं शुरू हो गईं। वह बड़बड़ाने लगा, "आज तो किस्मत खुल गई! इस दूध को मैं बाज़ार में बेचूंगा।"

सपनों का महल और मुर्गियों का फार्म

चलते-चलते धनीराम की सोच गहरी होती गई। उसने सोचा: "दूध बेचने से जो पैसे मिलेंगे, उससे मैं एक दर्जन अंडे खरीदूंगा। उन अंडों से चूजे निकलेंगे। जब चूजे बड़े होकर मुर्गियाँ बनेंगे, तो वे और अंडे देंगे। देखते ही देखते मेरे पास सैकड़ों मुर्गियाँ हो जाएंगी। मैं पूरे राज्य का सबसे बड़ा पोल्ट्री फार्म खोल लूंगा!"

उसका सपना यहीं नहीं रुका।

"जब मुर्गियाँ बेचकर ढेर सारा पैसा आएगा, तो मैं एक अच्छी नस्ल की गाय खरीदूंगा। फिर गाय का दूध बेचकर मैं भैंस खरीदूंगा। फिर मैं अपने लिए एक आलीशान महल बनवाऊंगा। गाँव के लोग मुझे 'सेठ धनीराम' कहकर बुलाएंगे।"

शादी, बच्चे और वो जोरदार लात

धनीराम अब पूरी तरह ख्यालों में खो चुका था। उसे सड़क के पत्थर और गड्ढे दिखाई नहीं दे रहे थे, बस अपना महल दिख रहा था।

उसने मन ही मन सोचा, "जब मैं इतना अमीर हो जाऊंगा, तो कोई बड़ा व्यापारी अपनी सुंदर बेटी की शादी मुझसे कर देगा। हमारे बच्चे होंगे। जब मैं आराम से अपने महल के बगीचे में लेटा हूँगा, तो बच्चे शोर मचाते हुए मेरे पास आएंगे।"

धनीराम के चेहरे पर गुस्सा आ गया (खयाल में ही सही)। उसने सोचा, "मैं उन्हें डांटूंगा कि शोर मत मचाओ, मैं थक गया हूँ। अगर वे फिर भी नहीं मानेंगे, तो मैं उन्हें जोर से एक लात मारूंगा!"

हकीकत से सामना

जैसे ही ख्यालों में धनीराम ने अपने शरारती बच्चों को मारने के लिए हवा में जोर से पैर चलाया, उसका संतुलन बिगड़ गया।

उसका पैर सड़क पर पड़े एक बड़े पत्थर से टकराया और सिर पर रखा दूध का घड़ा धड़ाम से नीचे गिर गया।

"छपाक!"

सारा दूध सड़क की धूल में मिल गया। न अंडे आए, न मुर्गियाँ, न महल और न ही शादी। धनीराम सड़क पर सिर पकड़कर बैठ गया। उसकी बरसों की योजना एक पल में मिट्टी में मिल गई थी। पास से गुजर रहे लोग उसे देखकर हंसने लगे और बोले, "सचमुच, यह तो महामूर्ख है!"

भारतीय लोककथाओं में ऐसे चरित्रों को अक्सर "शेखचिल्ली" (Sheikh Chilli) से जोड़ा जाता है। शेखचिल्ली एक प्रसिद्ध चरित्र है जो अपनी मूर्खता और हवाई किले बनाने के लिए जाना जाता है।


कहानी से सीख (Moral of the Story)

"केवल सपने देखने से कुछ हासिल नहीं होता, सफलता के लिए कड़ी मेहनत और वर्तमान में जीना ज़रूरी है।"

धनीराम की तरह खयाली दुनिया में जीने वाले लोग अक्सर अपने हाथ में मौजूद अवसरों (दूध का घड़ा) को भी खो देते हैं। बच्चों, योजना बनाना अच्छी बात है, लेकिन जब तक आप काम शुरू नहीं करते, तब तक सपने सिर्फ बुलबुले की तरह होते हैं—जो कभी भी फूट सकते हैं।

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